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छत्तीसगढ़ की मुर्दनगी


(डॉ.खूबचन्द बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ की दुरावस्था को उद्‍घाटित करते हुए समय रहते जागने का आव्हान करते चन्द्रोदय 1969 में प्रकाशित लेख)

चूँकि मैं भारत के एक अत्यंत पिछड़े भूखंड में पैदा हुआ हूँ और चूँकि मैं दिगर भारतीय भूखंडी और प्रदेशों के सामान छत्तीसगढ़ में भी नव चेतना जागृति और कर्तव्य परायणता का दृश्य देखने प्रबल पक्षपाती हूँ। इसलिए मैं अपना गम्भीर चिंतन छत्तीसगढ़ के प्रामाणिक और चरित्रवान युवकों के सम्मुख मननार्थ रखता हूँ।

आज समस्त भारत में दलगत सत्‍ता की राक्षसिय राजनीति ने नंगा नाच दिखाना शुरू कर दिया है। यह प्रलयकारी तांडव नृत्य हमारे प्रान्त में भी विशेष परिस्थिति में पैदा हो गया है। हम इसके लिए किसी को दल-बदलू, किसी को दल-पकडू सत्‍ता में लेबल लगाकर हतप्रभ नहीं करना चाहते । आज के राजनीतिक रोग की जड़ तो उस स्थल पर है, उस काल से प्रारंभ होता है जिस समय हमारे बड़े से बड़े नायकों ने मान लिया - सत्‍ता की राजनीति को ध्येय और जनकल्याण के दिखावों में ध्येय प्राप्‍ि‍त का साधन। जहां सत्‍ता, साधन और जनता की शुद्ध सेवा साध्य होना था वहाँ राष्ट्रपिता की भयंकर अवहेलना कर इस विनाशकारी नीति का अवलम्बन किया गया। उसी दूषित नीति का ही तो यह परिणाम है।

पर रोग और वस्तुस्थिति को सहज जान लेने से ही तो हमारा कल्याण न होगा। हमें उसके इलाज के बारे में भी सोचना होगा। देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि आज राजनीति के सर्वोपरि गौरव का स्थान प्राप्‍त कर लिया है । इसने जनजीवन कि प्रत्येक क्षेत्र को जकड़ रखा है। हमारे चाहने पर भी हम और आप इसके गिरीफा से बच नहीं सकते। तब क्या हमारा सर्वनाश निश्चित और अवश्यंभावी है?


मैं इसी प्रश्न का उत्तर इस छत्तीसगढ़ की सरजमीं पर फैली हुई आबो हवा को दृष्टि में रखकर देने की चेष्टा करूँगा। सबसे पहले मैं यह बता दूँ कि मैं गहरे अनुभव के बाद उन व्यक्तियों से कदापि सहमत नहीं जो आज की हवा में सत्‍ता हथियाकर छत्तीसगढ़ की भलाई की बात करते हैं। ऐसे बन्धु या तो भोले हैं या आत्मप्रवंचन के शिकार । आज तो सबसे अधिक संख्या में छत्तीसगढ़ के मंत्री भोपाल के गद्दी पर हैं पर क्या छत्तीसगढ़ के नवजागरण की रेखाएं प्रस्फुटित हो रही है? थोड़ी बहुत राहत सत्‍ता के माध्यम से हो भी जाये तो क्या विकसित हो सकेगी? सच पूछा जाय तो बुनियाद ही इस राजनीति की दूषित है। जनता भेंड, बकरी य पशु के समान है और विधायक और मंत्री छोटे और बड़े चरवाहे के रूपमें भोपाल में और तमाम जिलों में बड़े बड़े लट्ठ या लकड़ी लिए अपने सरकारी कर्मचारी रूपी आरई के द्वारा हकाले चले जा रहें हैं। किधर लेजा रहे हैं? कल्याण पथ की ओर? जी नहीं, कुर्सी या इन्द्रासन की ओर। किन्नर दल के नेताओं की दृष्टि एक मात्र भावी चुनावों की ओर है। मेरे दल के लोग अधिक से अधिक कैसे जावें? दूसरे दलों को अगली चुनावों में मैं कैसे मात दूँ? इस घात में हर एक गड़ड़िया या ठेठवार लगा हुआ है। केबिनेट की यह दिखाऊ दोस्ती जनहित साधक नहीं, दलहित साधक भले ही हों। इसलिए इन तथ्यों को ह्रदयंगम कर हम भेंड और मूकपशुत्व से छुटकारा पाकर मानवोचित उपायों और प्रक्रियाओं पर दृष्टीपात करें।

जहां तक मेरा अध्ययन और चिंतन है। मैं छत्तीसगढ़ में सबसे महान नैतिक दुर्गुण 'डरपोक पने' को मानता हूँ। इसलिए छत्तीसगढ़ को सामूहिक रूप से जगाने और ऊपर उठाने वाले उस कतिपय राजनीतिक जनसेवकों से भी सहमत नहीं हो पाता जो यज्ञ करुणा भक्ति का व्यापक कार्यक्रम लेकर जनता को आन्दोलित करना चाहते हैं। ये और ऐसे तमाम सदगुण उपदेश और लाभकारी है पर अपने अध्ययन से हमने यही समझ पाया है कि बिना निर्भयता के प्रथम हासिल किये अन्य सद्‍गुण हाथ नहीं लग सकते। इसलिए गीता में भी श्री कृष्ण भगवान ने 16वें अध्याय में दैविक गुणों का उल्लेख करते हुवे अभय को प्रथम और आदरणीय स्थान दिया है। यह अभय, यह निडरता हममें आवे तो कैसे आवे?

निडर आदमी साहसी होता है। कठिनाइयों को देखकर बगलें नहीं झाँकता। वह भयानक परिस्थिति से लोहा लेने के लिए बहादुरी से आगे कदम बढ़ाता है लेकिन कायर सहमकर तरह तरह के बहाने बनाने लगता है। नेता अगर साहसी होता है तो वह जनता के साहस और निर्भीकता का उल्लासवर्धक वातावरण निर्माण कर सकता है। ऐसी साहस के लिए हमें स्वार्थो को छोड़ना पड़ेगा। त्याग, तपस्या, कष्ट सहन और आत्म बलिदान का मार्ग अपनाना पड़ेगा। इसपर हमारे कुछ बहादुरी का डिंग हांकने वाले भाई कहेंगे कि हमारे हाथ में हथियार हो तो हम अपनी बहादुरी दिखा दें। मैं ऐसे बहादुरों से कहना चाहूँगा कि भाई मेरे बहादुरी का उद्‍गम स्थल हथियार नहीं, मनुष्य का हृदय है। जो आदमी हथियार के बल पर लड़ना चाहता है। वह हथियार न रहने पर या छीन जाने पर भीगी बिल्ली बन जाता है। परन्तु हृदय में साहस रखने वाला व्यक्ति मर जायेगा पर मैदान नहीं छोड़ेगा। छत्तीसगढ़ में हमें युगपिता (गाँधी जी) द्वारा सुझाए मार्गों से उसी अहिंसक निर्भयता का अपने अंदर विकास करना पड़ेगा। पर यह अहिंसा ही तो प्रेम कहलाता है, क्या यह प्रेम स्नेह और बन्धुत्व की उदात्त भावना हम छत्तीसगढ़ निवासियों में है? हम बुरी तौर से स्वर्ण और अवर्णों में विभाजित हैं। उच्च वर्ग का व्यक्ति दूसरे को अपने से नीच समझता है। एक जाति वाला दूसरे जाति वाले को दुश्मन और विरोधी के रूप में देखता है। मित्र, भाई और सहयोगी के रूप में नहीं। बल्कि घृणा और तिरस्कार सूचक शब्दों में जाति के साथ 'साले' शब्द का भी प्रयोग करता है। ऐसे वातावरण में जब हम एक दूसरे को साला शब्द से सम्बोधन करते हों तो कैसे प्रेम और बन्धुत्व का वातावरण निर्माण होगा? अक्सर ऐसा देखा जाता है उच्च वर्णी बन्धु दीगर बन्धुओं के प्रति अपेक्षाकृत अधिक तिरस्कार की अभिव्यक्ति करता है। फलस्वरूप हम तमाम छत्तीसगढ़ निवासी शोषकों, पीड़िकों और लूटेरों के हाथ की कठपुतली बने हैं।

अगर अनपढ़ ग्रामीण और अप्रबुद्ध जनता में यह ऐब हो तो बात समझ में आ सकती है परन्तु हमारा दुर्भाग्य तो यह है की पढ़े लिखे सभ्य और जननायक कहलाने वालों के मुख से भी ऐसे घातक और फैल-फूट के भावों को जन्म देने वाली माया का प्रयोग होते अनेकों बार देखा जा सकता है। हम शिक्षा की दृष्टि से भले ही डिग्रीधारी हों पर संस्कार हमारे निम्न कोटि के हैं। इसे हम शीघ्र सुधर लें नहीं तो प्रबुद्ध और जाग्रत जनता ऐसे लोगों को आसानी से क्षमा न कर सकेगी।

तो मैं इस लेख का कलेवर अधिक विस्तृत कर मंत्र रूप में यही कहना चाहूँगा कि हम अंग्रेजी के पांच Vowel (वॉवेल) या स्वरों को संकेत चिन्ह बना पांच सूत्रीय कार्य अपने हाथ में लेकर छत्तीसगढ़ में भातृभाव का संगठन करने आज और इसी घड़ी से लग जाएँ। 
वे स्वर हैं - A ए , E ई, I आई, O ओ, U यू । 
A ए - Agitate (एजिटेट) याने आन्दोलित करो
E ई - Educate (एजुकेट) याने शिक्षित करेंगे
I आई - Inspire (इंस्पायर) याने प्रेरणा देवो 
O ओ - Organise (ऑर्गनाइज) याने संगठित करो संघबद्ध करो
U यू - Unite (यूनाईट) याने एकता निर्माण करो।

मातृभाव के प्रचार में आंदोलन और प्रशिक्षण, प्रेरणा संगठन और एकता की मूल भावना, भाईचारे और पारिवारिक प्रेम पर आधारित हो विग्रहकारी, हिंसक और विद्रोहात्मक भावनाओं पर नहीं।

क्या आज का प्रबुद्ध और समझदार छत्तीसगढ़ मेरी अन्तःकरण से स्फुरित इस आवाज पर अमल कि दृष्टि से सोचेगा? छत्तीसगढ़ कि दर्दनाक दुरावस्था आज हर ईमानदार युवक से इसका जवाब तलब करती है। परमेश्वर हमें नपुंसकता से पुरुषार्थ की ओर प्रेरित करें...

डॉ.खूबचन्द बघेल
 
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